Monday, March 18, 2013

-कुछ देर सिमट कर जी लूं मैं,सौंदर्य का सार,(स्व:)



1-कुछ देर सिमट कर जी लूं मैं,
कुछ देर सिमट कर जी लूं मैं ,
तुम्हारे मखमली आगोश में ,
कुछ देर मचल कर अंगड़ाई लूं मैं,
महकती गर्म साँसों के घेरे में,
सहमी तर तराई इस ख़ुशी को ,
समेट लो अपने बाजुओं में ,
टिकी रहे देर तक मुझ प़र,
भुला दे,जो मुझसे मुझको,
मादकता में बहके हम दोनों,
खों जाएँ एक-दूसरे में.....................
डॉ.स्वीट एंजिल 


2- (स्व:)
कौशार्य की विस्मृत कोमलता लौट आने को है,
बचपन के उमंग , उल्लास ,स्वच्छंदता ,गीत-नाद ,
उत्सव------ सब कुछ लुप्त हुए थे कभी ,
प़र साजन के प्रेम में भीगी ,
चपल खंजन-सी ,फुदकती,चहकती ,
नवयुवती अलसाने को है!
2002


DrSweet Angel
सौंदर्य का सार
सौंदर्य का सार
सौंदर्य ........................................
भला लगता है नेत्रों को,

सुखद लगता है स्पर्श से,
सम्पूर्ण विश्व एक अथाह सागर ,
जिसमें भरा है सौंदर्य अपार ,
हर चर-अचर हर प्राणी ,
सौंदर्य को पूजता है बारम्बार !
सौंदर्य का कोष है पृथ्वी-लोक ,
सौंदर्य का भण्डार है देव- लोक,
प्रत्येक पूजित-अपूजित व्यक्ति,
कल्पना करता है तो केवल ,
सौंदर्य को पाने की ,
परन्तु......................
ऐसे कितने मिलते हैं यंहा ,
जो रूपता-कुरूपता को,
समान पलड़े प़र तोलते हैं ,
जो चाहतें हैं मानव-मात्र को
मानते हैं दोनों को समान?
डॉ.शालिनीअगम
1991




3:40am
 आलिंगन कर लूं 

जीवन का ?

तो क्या छोड़ दूं ?
अपनी सीमाओं को,
क्षुद्रताओं कों???????????
और वरण कर लूं असीम को,
क्या ये सारा आकाश मेरा है,?
और पृथ्वी के सारे सुख मेरे हैं?
क्या उठूं और आलिंगन कर लूं 
जीवन का ??????????
डॉ. शालिनिअगम



5-
काश! उत्सव आ जाए 
काश! उत्सव आ जाए ,
दीये ही दीये जल जाएँ ,
फूल ही फूल खिल जाएँ,
जो मैने जाना, मैंने जिया ,
मैंने पहचाना .........
कुछ न मिला...................
काश!
भीतर मेरी आत्मा का स्नान हो जाये ,
भीतर में स्वच्छ हो जाऊं ,
भीतर में आनंदमग्न हो जाऊं........
डॉ.स्वीट एंजिल 


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