Tuesday, August 3, 2010

dr.shaliniagam (shubh aarogyam)

नमस्ते भारतवर्ष,
हम जब अधिक बड़े काम की लालसा में छोटे कामो को महत्वहीन मान कर लापरवाही या बड़े गौण तरीके से कर डालतें है. तब परिणाम यह निकलता है कि हम नाकाम हो जातें है .
हम अपने आस-पास कि घटनाओं को देखे तो ये बहुतायत से होता है ,जिस व्यक्ति का स्वं प़र नियंत्रण जितना कम होता है, अपनी योग्यता प़र विश्वास नहीं होता या शिक्षा कम होने का एहसास होता है, वह उतना ही दूसरों प़र शासन करने और बहुत अधिक उत्तरदायित्वों को उठाने के लिए हमेशा लालायित रहता है। इस तरह वह अपनी हीन भावना पर पर्दा डालता है पर एक धीर व्यक्ति कम उत्तरदायित्व लेता है या एक काम को जिम्मेदारी से पूरा निपटने के बाद ही दूसरा काम हाथ में लेता है। बढ़-चढ़ कर बातें करना,डींगे हांकना उसके वश की बात नहीं होती , वह शांत गंभीर रह कर ज़िम्मेदारी निभाता है।
छोटे -छोटे कामों को भी भर-पूर शक्ति और उत्साह से करने प़र ही आपमें उत्साह और आत्मविश्वास का भाव जागृत होता है ,अपनी कार्य-क्षमता प़र भरोसा बढ़ता है जो व्यक्ति छोटे --छोटे कामों प़र अपना अधिकार कर लेता है,वह संभवत: बड़े काम का अधिकारी बन जाता है। एक उदाहरण देना चाहूंगी ........
एक आठवी कक्षा का छात्र बहुत परेशान था। हर प्रकार से होनहार और बुद्धिमान। प़र परेशानी थी तो स्कूल मे टीचर और घर में माँ के साथ नोट-बुक में काम पूरा नहीं, कोई पाठ याद नहीं, बसते में पूरी किताबे नहीं,पेन नहीं ,.....हर ओर लापरवाही। क्योंकि वह हर दिन के काम को छोटा और थोडा समझ ढेर इकठ्ठा करता रहा है,
अभी कर लूँगा,अभी बहुत समय है, परीक्षा दूर है इत्यादि-इत्यादि। नतीजा काम का ढेर देखते ही इतना घबराया कि धीरे-धीरे पढाई से भी मुहं चुराने लगा ........
"मनुष्य अपने एक-एक विचार ,एक-एक शब्द ,एक-एक क्रिया के अनुरूप निरंतर सफलता या असफलता हांसिल करता है."...............बड़े कामों की आधारशिला छोटे काम ही होतें हैं
मनुष्य को कोई काम करना है.तो ज़रूरी है कि वो उस प़र टूट पड़े ,छोटे-छोटे कामो की उपेक्षा या उन्हें बेदिली ,बेढंगे
तरीके से करना दुर्बलता की निशानी है
आलस्य और काम को टालने की आदत आपकी सामर्थ्य तथा योग्यता को उसी प्रकार नष्ट कर देता है,जिस प्रकार नशीली वस्तुओं का सेवन आपके शरीर को खोखला कर देता है
डॉ.शालिनिअगम

1 comment:

Atul Gupta said...

DR.SHALINIJI......................GOOD
JOB