Friday, April 9, 2010

mera dgar

मेरा घर,
सुबह की धूप में गुनगुनाता,
कड़कती ठण्ड में ठिठुरता मेरा घर,
सायं की लाली में सुर्मता
दोपहर की गर्मी में तपता मेरा घर!
रिमझिम फूहारो में भीगता
चाँद की चांदनी में चमचमाता मेरा घर,
ओस की बूंदों में नहाता,
इन्द्रधनुषी रंगों में रंगता मेरा घर!
सावन की बौछारों में मचलता
शीतल बयार में इतराता मेरा घर!
क्या जानू मैं स्वाग क्या है,
इन्द्र लोक का वैभव क्या है,
समस्त लोक का नैसर्गिक सुख,
देता लुटाता मेरा घर
.......................सदैव
......................shaliniiagam

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