Monday, April 12, 2010

kuchshabdmereapne

मैं तड़प रही मीन संमान,
जल से बाहर फेंक दी गयी,
सब कहें अंह,सूरज-चाँद -सितारे,
फूल- फल सब तेरे पास,
फिर कहे तू हो गयी उदास,
जीवन के अनगिनत रूप यंहा,
जल के भीतर ये सम्पदा कंहा,
भौतिक जगत के आनंद सभी ,
पर .........
तू घुटकर मरने को तैयार अभी,
न रस, न सुगंध,न रूप,से सरोकार,
मुझे तो बस जाना है जल के उस पार,
मैं जल क़ी रानी , जल मेरा प्रियतम,
जल मैं ही रानी मेरा निवास,
वो है अब समीप मेरे,
बाकी न बची अब कोई आस:

शालिनिअगम
1989

5 comments:

Unknown said...

what wounderful poems
i appriciate u...........
keep it up

Aman said...

Shalinij
its the search of a love so pure ..,

LOVE4U said...

SHAAAA
It's not how much you accomplish in life
that really counts,
but how much you give to other.
GREAT POETESS

$$$$$$ said...

HI SHALINI
Believe in the impossible,
hold tight to the incredible,
and live each day to its fullest potential.
$$$$$$

sudh(:0) said...

SHALU DEAR.......
You
can
make
a difference
in
your
world